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nidhivan temple

मथुरा के इस मंदिर में आज भी रास राधा संग रास रचाने आते हैं श्री कृष्ण

भगवान कृष्‍ण की आस्‍था और भक्‍ति की कोई सीमा नहीं है। भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी श्रीकृष्‍ण के हजारों-करोडों भक्‍त हैं। उत्तर प्रदेश के वृंदावन और मथुरा से कन्‍हैया के जीवन से जुड़ी कई कथाएं, स्‍थान और लीलाएं प्रसिद्ध हैं।

आज भी बड़ी संख्‍या में भक्‍त कृष्‍ण की जन्‍मभूमि के दर्शन करने आते हैं। वैसे तो आपको वृंदावन में अनेक धार्मिक स्‍थल दिख जाएंगें लेकिन निधिवन का अपना ही एक अलग महत्‍व है। जी हां, निधि‍वन वो स्‍थान है जहां आज भी श्रीकृष्‍ण रास रचाने आते हैं।

उनके साथ गोपियां और राधा रानी भी होती हैं। दोस्‍तों, इस वीडियो के जरिए हम आपको रहस्‍यमयी निधिवन के बारे में बताने और साक्षात् दर्शन करवाने जा रहे हैं।

रात होने से पहले ही सब वन से चले जाते हैं

निधिवन के मुख्य गोसाईं भीख चंद्र गोस्वामी के अनुसार, यह तो शास्त्रों में भी वर्णित है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की रात में ही गोपियों के साथ रासलीला की थी।

किंतु, निधिवन के बारे में यह मान्यताएं रही हैं कि रोज रात श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रासलीला रचाते हैं। शरद पूर्णिमा की रात, निधिवन में प्रवेश पूरी तरह वर्जित रहता है। दिन में श्रद्धालु प्रवेश कर सकते हैं, कोई रोक नहीं है। मगर, शाम होते ही निधिवन को खाली करा दिया जाता है।

ऐसा सिर्फ निधिवन ही नहीं, बल्कि थोड़ी दूर स्थित सेवाकुंज में भी होता है। वहां भी कृष्ण के रास रचाने की मान्यता हैं, जहां राधा रानी का प्राचीन मंदिर है।

राधा कृष्ण के बैठने ​के लिए सजाते हैं सेज

रास मंडलसे जुड़े पुजारी बताते हैं कि निधिवन के अंदर बने महल में रासलीला की मान्यता रही हैं। हजारों साल से श्रद्धालुओं में ऐसा विश्वास रहा है कि रंग महलमें रोज रात को कन्हैया आते हैं।

यहां रखे गए चंदन के पलंग को शाम 7 बजे से पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है। सुबह देखते हैं तो लोटा खाली मिलता है। पान भी नहीं मिल पाता।

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तुलसी, मेंहदी जैसे पवित्र पेड़ हैं पूरे निधिवन में

निधिवन एक वन जैसा ही है, जिसमें तुलसी और मेंहदी के पेड़ ज्यादा हैं। ये सामान्य तुलसी के पौधों से एकदम अलग हैं। आकार में बड़े हैं और साथ ही इन पेड़ों की शाखाएं जमीन की ओर आती हैं।

 जमीन की ओर अपना रुख मोड़ लेती हैं डालें

इतना ही नहीं, यहां तुलसी के पेड़ जोड़ों में हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब रात में रास होता है तो ये सभी पेड़ ही गोप-गोपियां के रूप में आ जाते हैं। इन तुलसी के पेड़ों की यह भी मान्यता है कि इनका एक पत्ता भी कोई यहाँ से नहीं ले जा सकता। कहा जाता है कि आज तक जो भी इनके पत्तों को ले गया है वह किसी न किसी आपदा का शिकार ज़रूर हुआ ही है। इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता।

लोटे का पानी खाली और पान खाया हुआ मिलता है जैसा कि बताया जा चुका है कि हर शाम को पुजारी राधा-कृष्ण के बैठने ​के लिए सेज सजाते हैं और भोग रख जाते हैं। उस रात के बाद सुबह 5 बजे जब रंग महलके पट खुलते हैं तो सेज अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली और पान खाया हुआ मिलता है।

किवदंतियां हैं कि रात के समय जब कान्हां यहां आते हैं तो राधा जी रंग महलमें श्रृंगार करती हैं। जबकि, कान्हा चंदन के पलंग पर आराम करते हैं। फिर, गोप-गोपियों के संग दोनों रंग महलके पास बने रास मंडलमें रास रचाते हैं।

यहाँ एक कुंड भी स्थित है जिसे विशाखा कुंड के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि जब कृष्ण गोपियों के साथ रास रचा रहे थे तब उनकी एक सखी विशाखा को प्यास लगी। पानी की कोई व्यवस्था न देखकर कृष्ण ने अपनी बंशी से ही वहां खोदना शुरू कर दिया, जिसमें से निकले पानी को पीकर विशाखा ने अपनी प्यास बुझाई और तभी से इस कुंड को विशाखा कुंड कहा जाने लगा।

निधिवन में रहने वाले भक्‍त की कथा

एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु जी की सुनाई हुई भागवत कथा से इतना प्रभावित हुआ कि वह हर घडी वृन्दावन आने की सोचने लगा।

उसके गुरु जी उसे निधिवन के बारे में बताते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ निधिवन में रात्रि को रास रचाने आते है पर उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि वृन्दावन जरुर जाऊंगा।

श्री राधा रानी जी की कृपा से वह निधिवन आ गया और यहां श्री वृन्दावन धाम में जी भर कर बिहारी जी और राधा रानी का दर्शन किया। लेकिन अब भी उसे इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है इसलिए उसने सोचा कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हूँ।

जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड गयी जो लता के पीछे छिपा हुआ था और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चला गया।

लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गया और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाला गया और आखिर में उसने निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाला जहा उसे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठा रहा और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है।

सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था। लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और वो ऐसे ही 3 दिनों तक बिना कुछ खाए पिये बेसुध पड़ा रहा और 5 दिन बाद उसके गुरु वहां पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये।

आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए। जब गुरूजी स्नान करके आश्रम में आये तो पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया था। और उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था।

उस कागज पर जो लिखा था वो इस प्रकार है।

गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है। पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हूँ। आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर विश्वास नहीं करता था।

लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात श्री बांके बिहारी जी को राधा रानी जी और अन्य गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोई इच्छा नहीं है। इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर करूँगा भी क्या?

श्री श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है। इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये। उस भक्त का अपने गुरु के लिए लिखा गया वह पत्र आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है। यह पऋ बंगाली भाषा में लिखा हुआ है।

वृंदावन के अन्‍य दर्शनीय स्‍थल

ये हैं अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल मथुरा जिले में वृंदावन के अलावा भूतेश्वर महादेव, ध्रुव टीला, कंस किला, अम्बरीथ टीला, कंस वध स्थल, पिप्लेश्वर महादेव, बटुक भैरव, कंस का अखाड़ा, पोतरा कुंड, गोकर्ण महादेव, बल्लभद्र कुंड, महाविद्या देवी मंदिर आदि प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

निधिवन का मंदिर खुलने का समय

ग्रीष्मकाल : प्रातः काल : 05:00 प्रातः से 08:00 रात्रि

शीतकाल : प्रातः काल : 06:00 प्रातः से 07:00 रात्रि

वृंदावन कैसे पहुंचे

सड़क मार्ग द्वारा : दिल्ली, इलाहाबाद और आगरा जैसे शहरों से वृंदावन के लिए बसें चलती हैं। यहां के लिए राज्य पथ परिवहन निगम की बसें भी चलती हैं। इसके अलावा डीलक्स और वॉल्वों की सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

रेल मार्ग द्वारा : वृंदावन का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन मथुरा में है। दरअसल ज्यादातर पर्यटक वृंदावन और मथुरा को एक ही समझते हैं, क्योंकि दोनों ही भगवान कृष्ण से जुड़ा महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। मथुरा के लिए दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहरों से ट्रेनें आसानी से मिल जाती हैं। शताब्दी एक्सप्रेस, कोलकाता तूफान एक्सप्रेस और चेन्नई जीटी एक्सप्रेस नियमित रूप से मथुरा से गुजरती है।

वायु मार्ग द्वारा : यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट दिल्ली में है, जो 150 किमी दूर है। दिल्ली से आप प्राइवेट टैक्सी, डीलक्स बस या वॉल्वो कोच ले सकते हैं, जो आपको करीब 3 घंटे में वृदांवन पहुंचा देगी।

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