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शादी न होने के कारण और इसके लिए उपाय

लड़का या लड़की शादी योग्य होने के बाद भी शादी नहीं हो पा रही है, तो कुंडली में दोष इसका कारण माना जाता है। ऐसे लोगों की कुंडली में कई ग्रह होते हैं, जो शादी में बार-बार बाधा पैदा करते हैं। हर व्यक्ति अपनी शादी के सपने देखता है। वह उस व्यक्ति के साथ जीवन साझा करना चाहता है, जो हर पल उसका समर्थन करे, उससे प्यार करे। लेकिन शादी समय पर न हो, तो यह एक गंभीर समस्या है। माता-पिता भी अपने बच्चों की शादी को लेकर चिंतित होते हैं। खासतौर से तब उनकी चिंता बढ़ जाती है, जब बच्चों की शादी सही उम्र में न हो रही हो। कई बार तो दोनों पक्षों से सहमति मिलने के बाद भी आखिरी समय में रूकावट आ जाती है, जिससे शादी नहीं हो पाती। आमतौर पर मंगल, राहू, केतू यदि सांतवें घर में बैठे हों, तो बच्चों की शादी में देरी होती है। शनि मंगल, शनि राहू, मंगल राहू, शनि सूर्य, सूर्य मंगल, सूर्य राहू एकसाथ सांतवें या आठवें घर में हों, तब भी शादी में अड़चने आती हैं। ऐसे और भी कुछ अंतर्निहित ज्योतिष कारण हैं, जो लड़के या लड़की की शादी में देरी का कारण बन रहे हैं। देर से विवाह के लिए कौन से ग्रह जिम्मेदार हैं वैदिक ज्योतिषि के अनुसार, विवाह आपके जीवन का सबसे जरूरी हिस्सा है। आपकी कुंडली में सप्तम भाव को विवाह भाव के रूप में जाना जाता है। हालांकि कुछ चुनौतियां हैं, जिनका सामना कई बार दोनों पक्षों को करना पड़ता है, जब विवाह में देरी हो रही हो तब। कुछ ग्रह ऐसे हैं, जो कुंडली में जम कर बैठ जाते हैं और बाधा पैदा कर सकते हैं। महिला के विवाह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ग्रह हैं ब्रहस्पति और पुरूषों के लिए शुक्र। जब ये दोनों ग्रह जोड़े का विवाह का आंनद देने के लिए मजबूत नहीं हेाते, तो विवाह होने की संभावना बहुत कम होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि शुक्र प्रेम का ग्रह है और ब्रहस्पति ज्ञान और धन का ग्रह है। साथ ही शनि ग्रह आपकी वैवाहिक संभावनाओं पर भी हानिकारक प्रभाव डालता है। इसके साथ ही सूर्य सप्तम भाव में स्थित होकर विवाह में देरी की वजह बन सकता है। मांगलिक दोष है कारण- कुछ लोगों की कुंडली में मांगलिक दोष भी होता है, जो उनकी कुंडली में अस्थिर मंगल का नतीजा होता है। यदि मांगलिक दोष को समय पर ठीक नहीं किया गया, तो इसके विनाशकारी प्रभाव सामने आते हैं। जैसे जीवनसाथी की मृत्यु, विवाह में विफलता आदि। राहु और केतु- राहु और केतु-जैसे ग्रह भी आपके विवाह में देरी का कारण बन सकते हैं। जहां राहु आपको जुनूनी महसूस कराता है, वहीं केतु आपको अलग-थलग महसूस करने और शादी के लिए दिलचस्पी न दिखाने के लिए जिम्मेदार है। इसके अलावा वक्री और नीच ग्रह विवाह में देरी का प्रमुख कारण है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी वैवाहिक संभावनाएं पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं। ज्येातिषों से सलाह करके आप विवाह में देरी के सभी समाधान पा सकते हैं। बेटी की शादी के उपाय आजकल ज्यादातर माता-पिता अपने बच्चे की शादी में देरी की समस्या से जूझ रहे हैं । यहां हम आपको लड़कियों की शादी जल्दी करने के कुछ उपाय बता रहे हैं । जल्दी शादी के इन उपायों को कोई भी इस्तेमाल कर सकता है। – वास्तु के अनुसार अविवाहित लड़कियों को जल्दी विवाह के लिए हमेशा घर के उत्तर पश्चिम कमरे में सोना चाहिए। – फेंगसुई के अनुसार, कमरे में मांदानिन बतख की एक जोड़ी रखना लड़कियों के विवाह और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। – बृहस्पति लड़कियों की शादी का ग्रह है। इसलिए जिन लड़कियों की शादी नहीं हो रही , उसे हर गुरूवार को केले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए और व्रत भी रखना चाहिए। – लड़की की शादी जल्दी हो जाए, इसके लिए उन्हें हर दिन सीता विवाह प्रसाद का पाठ करना चाहिए। – पुखराज या पीला निलम रत्न धारण करने से महिलाओं की जल्दी शादी में मदद मिलती है। लेकिन इसे पहनने से आपको ज्योतिषि से सलाह जरूर लेनी चाहिए। जल्दी शादी होने के आध्यात्मिक उपाय – 11 सोमवार तक 1200 ग्राम चने की दाल और एक चौथाई लीटर दूध का दान करें। भगवान विष्णु की स्तुती करें। – अविवाहित लड़कियों को 43 दिन तक अलग-अलग लड़कियों को नेल पॉलिश बांटनी चाहिए। सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी। – 21 दिनों तक संकल्प लेकर अरगला स्त्रोत में दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और मां कत्यायनी का पूजन करें। – यदि कन्या के विवाह में देरी हो रही है, तो कन्याओं को मूर्ति के सामने पांच नारियल रखकर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। – यदि लड़की की कुंडली में शनि ग्रह के कारण विवाह में बाधा आ रही है, तो शनिवार के दिन शिवलिंग पर काली तिल चढ़ाएं। – यदि विवाह में मांगलिक दोष के कारण देरी हो रही है, तो जातक को मंगल चंडिका स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। – जो लड़कियां विवाह में देरी का सामना कर रही हैं, उन्हें सलाह दी जाती है कि पीपल के पेड की जड़ों को लागातार 13 दिनों तक पानी दें। सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी। जल्दी शादी के लिए कौन सा रत्न पहनना चाहिए जिन लोगों की शादी में अड़चनें आ रही हैं, उन्हें यहां पर बताएं रत्न जरूर पहनने चाहिए। पन्ना – यह एक हरे रंग का कीमती रत्न और विवाह के लिए बहुत लाभकारी रत्न है। इसे पहनने से जातक सकारात्मक महसूस करता है और रिश्ते में भी मजबूती आती है। डायमंड- रिश्ते में प्यार और रोमांस को बनाने के लिए डायमंड पहनना चाहिए। पीला नीलम- जिन लोगों की शादी नहीं हो रही है, वे इस रत्न को पहन सकती हैं। यह रत्न बृहस्पति से जुड़ा हुआ है, इसलिए इसे पत्थरों में शुभ माना जाता है। माणिक- यह शादी में आ रही बाधाओं और संघर्षों को दूर करने के लिए बहुत अच्छा है। हेजोनाइट- यह राहु के लिए कीमती रत्न है। शरीर और मन के संबंधों का ख्याल रखते हुए केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को शांत करता है , जिससे विवाह में ज्यादा समझ और स्वीकृति होती है। लड़के के लिए

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रुद्राक्ष पहनने के फायदे और नुकसान

रुद्राक्ष क्या होता है – Rudraksha Kya Hai रुद्राक्ष महादेव प्रलयकर्ता भगवान शंकर का अंश है। दूसरे शब्दों में कहें तो रुद्राक्ष शिव ही है। रुद्राक्ष शब्द प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा दिया गया है, देवों की भाषा संस्कृत भाषा का एक दिव्य शब्द है। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। रुद्राक्ष शिव का वरदान है, जो भगवान शिव लोगो के और संसार के दु:खों को दूर करने के लिए प्रकट किया था। रुद्र+अक्ष- इन दो शब्दों से मिलकर रुद्राक्ष बनता है। रुद्र का मतलब होता है- भगवान शंकर और अक्ष का मतलब- आंखें होता है। इस प्रकार रुद्राक्ष का अर्थ होता- भगवान शंकर का नेत्र। रुद्राक्ष भगवान शंकर का तीसरा नेत्र है। रुद्राक्ष पहनने के फायदे और नुकसान – rudraaksh pahanane ke fayde aur nukasaan रुद्राक्ष पहनना भगवान शिव को धारण करने जैंसा है। रुद्राक्ष पहनने से पहले व पहनने के बाद कुछ विशेष नियमों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। विज्ञान (Science) भी रुद्राक्ष की चमतकार को मानता करता है। रुद्राक्ष पहनने से भगवान शिव की आपके उपर कृपा होती है। कुण्डली के दोष दूर होते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक का होता है। अलग अलग रुद्राक्ष अलग अलग कामनाओं की पूर्ति करता है। रुद्राक्ष पहनने के बहुत सारे फायदे हैं लेकिन यही रुद्राक्ष व्यक्ति के जीवन में महान संकट भी ला सकता है। यदि इसे नियम से न पहना जाए। रुद्राक्ष पहनने वाले को मदिरा पान, शराब, मीट मांस आदि का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। यह बात स्वयं भगवान शंकर ने देवताओं को बताई। आइये, पहले रुद्राक्ष पहनने के फायदे और नुकसान जानते हैं। रुद्राक्ष पहनने के फायदे- Rudraksha Pahanne Ke Fayde रुद्राक्ष पहनने से बहुत सें फायदे होते हैं। इस बात में कोई भी शाक नहीं है। विज्ञान तक भी इस बात को स्वीकार करता है। रुद्राक्ष पहनने के कुछ विशेष फायदे है आइये जानते है – दिमाग शान्त होता है। तनाव को दूर करता है। मानसिक बीमारी दूर होती है। वैवाहिक जीवन अच्छा बनता है। जीवन में प्रेम बढने लगता है। मष्तिष्क पर नियंत्रण होता है। रुद्राक्ष पहनने के नुकसान – Rudraksha Pahanne Ke nukasaan एक ओर रुद्राक्ष पहनने से जहां अनेकों फायदे होते हैं। वहीं दूसरी ओर रुद्राक्ष पहनने से बहुत सारे नुकसान भी हो सकते हैं। नुकसान के बहुत सारे कारण हैं। जैंसे कि रुद्राक्ष को सही विधि से धारण न करना, रुद्राक्ष पहनने के बाद के नियमों का पालन न करना, अपने अनुसार गलत मुखी रुद्राक्ष धारण कर लेना आदि। रुद्राक्ष पहनते वक्त और पहनने के बाद इसके नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। अन्यथा रुद्राक्ष पहनने के नुकसान हो सकते हैं। गलत विधि से रुद्राक्ष पहनने के निम्न नुकसान हो सकते हैं। बिना नियम से पहना गया रुद्राक्ष मन को अस्थिरता देता है। रुद्राक्ष पहनने के बाद नियम पालन न करने से यह व्यक्ति को भटका देता है। शराब व मांस का सेवन करने से रुद्राक्ष का बुरा असर पड़ता है। रुद्राक्ष पहनने के बाद के नियम – rudraksha pahanne ke baad ke niyam जब रुद्राक्ष धारण करें तो रुद्राक्ष मंत्र और रुद्राक्ष मूल मंत्र का 9 बार जाप करना चाहिए, साथ ही इसे सोने से पहले और रुद्राक्ष को हटाने के बाद भी दोहराया जाना चाहिए। रुद्राक्ष को एक बार निकाल लेने के बाद उस पवित्र स्थान पर रखना चाहिए जहां आप पूजा करते हैं। रुद्राक्ष को तुलसी की माला की तरह की पवित्र माना जाता है। इसलिए इसे धारण करने के बाद मांस-मदिरा से दूरी बना लेना चाहिए। एक महत्वपूर्ण बात यह है कि रुद्राक्ष को कभी भी श्मशान घाट पर नहीं ले जाना चाहिए। इसके अलावा नवजात के जन्म के दौरान या जहां नवजात शिशु का जन्म होता है वहां भी रुद्राक्ष ले जाने से बचना चाहिए। महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान रुद्राक्ष नहीं पहनना चाहिए। रुद्राक्ष को बिना स्नान किए नहीं छूना चाहिए। स्नान करने के बाद शुद्ध करके ही इसे धारण करें। रुद्राक्ष धारण करते समय भगवान शिव का मनन करें। इसके साथ ही शिव मंत्र ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करते रहें। रुद्राक्ष को हमेशा लाल या फिर पीले रंग के धागे में पहनना चाहिए। कभी भी इसे काले रंग के धागे में नहीं पहनना चाहिए। इससे अशुभ प्रभाव पड़ता है। रुद्राक्ष माला को आपने धारण कर लिया है तो अब इसे किसी और को बिल्कुल न दें। इसके साथ ही दूसरे की दी गई रुद्राक्ष को बिल्कुल धारण न करें। रुद्राक्ष की माला को हमेशा विषम संख्या में पहनना चाहिए। लेकिन 27 मनकों से कम नहीं होनी चाहिए। रुद्राक्ष को हमेशा साफ रखें। मनके के छिद्रों में धूल और गंदगी जम सकती है। जितनी बार हो सके इन्हें साफ करें.. अगर धागा गंदा या घिस जाता है, तो इसे बदल दें। सफाई के बाद रुद्राक्ष को गंगाजल से धो लें। यह इसकी पवित्रता बनाए रखने में मदद करता है। रुद्राक्ष गर्म प्रकृति के होते हैं। जिसके कारण कुछ लोगों को एलर्जी की समस्या हो जाती है। इसलिए बेहतर है कि इसका उपयोग न करें बल्कि पूजा घर में रखकर रोजाना पूजा करें। रुद्राक्ष की पहचान कैसे करे – rudraksha ke pahachaan kaise kare बाजार में इस समय प्लास्टिक और फाइबर का रुद्राक्ष भी बिक रहे हैं। अध्ययन में पाया गया है कि लकड़ी को रुद्राक्ष का आकार देकर या फिर टूटे रुद्राक्षों को जोड़कर भी नया रुद्राक्ष बनाने का धंधा चल रहा है। जो असली रुद्राक्ष होता है उसके फल में प्राकृतिक रूप से छेद होते हैं। जबकि भद्राक्ष में छेद करके रुद्राक्ष का आकार दिया जाता है। असली रुद्राक्ष को सरसों के तेल में डुबाने से वह रंग नहीं छोड़ता है जबकि नकली रुद्राक्ष रंग छोड़ देता है। असली रुद्राक्ष पानी में डुबाने पर वह डूब जाता है , जबकि नकली रुद्राक्ष तैरता रहता है। असली रुद्राक्ष को पहचाने के लिए उसे किसी नुकिली चीज से कुरेदने पर अगर उसमें से रेशा निकलता हो तो वह असली रुद्राक्ष होता है। रुद्राक्ष कैसे पहनना चाहिए – rudraaksh kaise pahanna chaahie रूद्राक्ष सोमवार के दिन धारण करना चाहिए। किन्‍तु कुछ खास अवसरों जैसे श्रावण माह या नवरात्रों में इसे किसी भी दिन धारण किया जा सकता है। रूद्राक्ष को पितृ पक्ष या

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कौन सा रत्न किस धातु में धारण करना चाहिए

कौन सा रत्न किस धातु में धारण करना चाहिए – kaun sa ratna kis dhaatu mein dhaaran karana chaahie ज्‍योतिष के अनुसार रत्‍नों को धारण करने से जीवन की कई तरह की समस्‍याओं से छुटकारा मिल जाता है। कोई रत्‍न सेहत को फायदा पहुंचाता है तो किसी रत्‍न को पहनने से करियर को तरक्की मिलती है। हालांकि, रत्‍न तभी अपना असर दिखाते हैं जब इन्‍हें इनकी सही विधि के अनुसार धारण किया जाए साथ ही रत्‍नों के लिए कुछ विशेष धातु भी होते हैं। सौरमंडल में नौ ग्रह हैं और इन नौ ग्रहों को अपने पक्ष में करने और इनका सकारात्‍मक प्रभाव पाने के लिए रत्‍न धारण किए जाते हैं। ग्रहों को मजबूती बनाने के लिए भी रत्‍न पहने जाते हैं। रत्‍न अपना असर तो दिखाते हैं लेकिन इन्‍हें किस धातु में पहना जा रहा है, ये बात भी महत्‍वपूर्ण होती है। नीलम किस धातु में धारण करें? नीलम सबसे शक्‍तिशाली और क्रूर कहे जाने वाले शनि ग्रह का रत्‍न है। कुंडली में शनि को बली करने के लिए नीलम रत्‍न पहना जाता है। नीलम रत्‍न को पंचधातु या स्‍टील की अंगूठी में जड़वाकर धारण करना चाहिए। नीलम रत्‍न को कम से कम चार रत्ती का तो धारण करना ही चाहिए। इसे आप अंगूठी या लॉकेट में पहन सकते हैं। पन्ना किस धातु में धारण करें? पन्‍ना रत्‍न बुद्धि के कारक बुध का रत्‍न है। जो भी इस रत्‍न को धारण करता है उसे बुद्धि के साथ-साथ सेहत की भी प्राप्‍ति होती है। पन्‍ना रत्‍न चांदी की धातु में सर्वोत्तम रहता है लेकिन आप इसे सोने में भी पहन सकते हैं। चांदी की धातु में पन्‍ना सबसे ज्‍यादा लाभ देता है। पन्‍ना कम से कम तीन रत्ती का तो होना ही चाहिए। माणिक किस धातु में धारण करें? माणिक्‍य को अंग्रेजी में रूबी भी कहा जाता है। सूर्य का यह रत्‍न आपको सफलता की ऊंचाईयों तक पहुंचा सकता है। रूबी स्‍टोन को सोने की अंगूठी में रविवार, सोमवार और गुरुवार के दिन पहनना चाहिए। रूबी पांच रत्ती का पहनें। गोमेद किस धातु में धारण करें राहू का रत्‍न है गोमेद और ये स्‍टोन व्‍यापारियों के लिए बहुत लाभप्रद होता है। स्‍टॉक मार्केट से जुड़े लोगों का भी गोमेद लाभ देता है। गोमेद रत्‍न को चांदी या अष्‍टधातु में धारण करना शुभ रहता है। शाम के समय विधि अनुसार राहू की उपासना कर इस रत्‍न की अंगूठी को मध्‍यमा अंगुली में धारण करें। गोमेद कम से कम 6 रत्ती का होना चाहिए। मोती किस धातु में धारण करें चंद्रमा का रत्‍न है मोती जोकि मन को शीतलता प्रदान करता है। चंद्रमा मन और मस्तिष्‍क का कारक होता है और इसलिए इस रत्‍न को धारण करने से चंचल मन को भी नियंत्रित किया जा सकता है। मोती रत्‍न केवल चांदी की अंगूठी में पहनना चाहिए। आप 2, 4, 6 या 11 रत्ती का मोती पहन सकते हैं। लहसुनिया किस धातु में धारण करें केतु का रत्‍न लहसुनिया भी आपके जीवन की परेशानियों को दूर कर सकता है। केतु के अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए लहसुनिया रत्‍न धारण किया जाता है। चांदी की धातु में लहसुनिया पहनना शुभ रहता है। इसे शनिवार के दिन पहनना चाहिए। पुखराज किस धातु में धारण करें पीला पुखराज देवताओं के गुरु बृहस्‍पति का रत्‍न है। बृहस्‍पति के शुभ फल प्राप्‍त करने के लिए पुखराज रत्‍न धारण किया जाता है। इस रत्‍न को सोने की धातु में पहनना सबसे ज्‍यादा शुभ रहता है। मूँगा किस धातु में धारण करें मंगल का रत्‍न मूंगा है। ये रत्‍न कमजोर और डरपोक लोगों के लिए किसी वरदान से कम नही है। मूंगा रत्‍न को सोने की अंगूठी में धारण करना शुभ रहता है। सोने के अलावा चांदी या तांबे की धातु में भी आप इसे पहने सकते हैं। कम से कम 6 रत्ती का मूंगा धारण करें। ओपल किस धातु में धारण करें वैसे तो शुक्र का रत्‍न डायमंड है लेकिन हर कोई डायमंड नहीं खरीद सकता है इसलिए डायमंड के स्‍थान पर शुक्र के लिए ओपल रत्‍न पहनने की सलाह दी जाती है। ओपल को सोने की धातु में पहनना चाहिए। यदि सोने में संभव ना हो तो चांदी या व्‍हाईट गोल्‍ड में इस रत्‍न को जड़वाकर धारण कर सकते हैं।

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छठ पूजा 2022 में कब है

छठ पूजा 2022 में कब है – chhath pooja 2022 mein kab hai इस साल छठ पूजा का शुभ अवसर रविवार के दिन 30 अक्टूबर का है। छठ पूजा का क्या इतिहास है – chhath pooja ka kya itihaas hai छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि विधान से की जाती है। छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक क​था राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। आइए जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कथाएं क्या हैं। बिहार मे हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को साथ ही इस्लाम अन्य धर्म भी मनाते हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में फैल गया है। छठ पूजा सूर्य, उषा, प्रकृति,जल, वायु और उनकी बहन छठी म‌इया को समर्पित है ताकि उन्हें पृथ्वी पर जीवन की देवतायों को बहाल करने के लिए धन्यवाद और कुछ शुभकामनाएं देने का अनुरोध किया जाए। छठ में कोई मूर्तिपूजा शामिल नहीं है। त्यौहार के अनुष्ठान कठोर हैं और चार दिनों की अवधि में मनाए जाते हैं। इनमें पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी वृत्ता से दूर रहना, लंबे समय तक पानी में खड़ा होना, और प्रसाद (प्रार्थना प्रसाद) और अर्घ्य देना शामिल है। परवातिन नामक मुख्य पूजने वाले आमतौर पर महिलाएं होती हैं। हालांकि, बड़ी संख्या में पुरुष इस उत्सव का भी पालन करते हैं क्योंकि छठ लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है। छठ महापर्व के व्रत को स्त्री – पुरुष – बुढ़े – जवान सभी लोग करते हैं। छठ पूजा साल में दो बार होती है एक चैत मास में और दुसरा कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के दिन में हम षष्ठी माता की पूजा करते हैं षष्ठी माता कि पुजा घर परिवार के सदस्यों के सभी सदस्यों के सुरक्षा एवं स्वास्थ्य लाभ के लिए करते हैं षष्ठी माता की पूजा, सुरज भगवान और मां गंगा की पूजा देश में एक लोकप्रिय पूजा है। यह प्राकृतिक सौंदर्य और परिवार के कल्याण के लिए की जाने वाली एक महत्वपूर्ण पूजा है। इस पुजा में गंगा स्थान या नदी तालाब जैसे जगह होना अनिवार्य हैं यही कारण है कि छठ पूजा के लिए सभी नदी तालाब कि साफ सफाई किया जाता है और नदी तालाब को सजाया जाता है प्राकृतिक सौंदर्य में गंगा मैया या नदी तालाब मुख्य स्थान है। छठ पूजा में किसकी पूजा की जाती है – chhath pooja mein kisakee pooja kee jaatee hai छठ पूजा वास्तविक रूप में प्रकृति की पूजा है। इस अवसर पर सूर्य भगवान की पूजा होती है, जिन्हें एक मात्र ऐसा भगवान माना जाता है जो दिखते हैं। अस्तलगामी भगवान सूर्य की पूजा कर यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि जिस सूर्य ने दिनभर हमारी जिंदगी को रौशन किया उसके निस्तेज होने पर भी हम उनका नमन करते हैं। छठ पूजा के मौके पर नदियां, तालाब, जलाशयों के किनारे पूजा की जाती है जो सफाई की प्रेरणा देती है। यह पर्व नदियों को प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रेरणा देता है। इस पर्व में केला, सेब, गन्ना सहित कई फलों की प्रसाद के रूप में पूजा होती है जिनसे वनस्पति की महत्ता होती है। सूर्योपासना का यह पर्व सूर्य षष्ठी को मनाया जाता है, लिहाजा इसे छठ कहा जाता है। यह पर्व परिवार में सुख, समृद्धि फल प्रदान करने वाला माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि छठ देवी भगवान सूर्य की बहन हैं, इसलिए लोग सूर्य की तरफ अर्घ्य दिखाते हैं और छठ मैया को प्रसन्न करने के लिए सूर्य की आराधना करते हैं। छठ पूजा कब शुरू हुई – chhath pooja kab shuroo huee नहाय-खाय के साथ आज से आरंभ हुए लोकआस्था के इस चार दिवसीय महापर्व को लेकर कई कथाएं मौजूद हैं। एक कथा के महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया। इससे उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। इसके अलावा छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है। कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। मान्याताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य का नमन करते है। छठ माता कौन है- chhath mata kaun hai पुराणों में कहीं सूर्य की पत्नी संज्ञा को, कहीं कार्तिकेय की पत्नी को षष्ठी देवी या छठी मैया माना गया है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार, प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई सोलह मातृकाओं अर्थात माताओं में प्रसिद्ध षष्ठी देवी (छठी मैया) ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं और कहा जाता है कि ये वही देवी हैं जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि को की जाती है। इनकी पूजा करने से संतान प्राप्ति व संतान को लंबी उम्र प्राप्त होती है। एक अन्य मान्यता के अनुसार, इन्हें सूर्य देव की बहन भी माना जाता है और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की जाती है।  छठ माता बच्चों की रक्षा करने वाली देवी हैं। इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। शिशु के जन्म के छह दिनों बाद इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। इनकी प्रार्थना से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और लम्बी उम्र होने का आशीर्वाद मिलता है। छठ पूजा का महत्व क्या है – छठ पूजा

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कौन सा वार किस भगवान का होता है

कौन सा वार किस भगवान का होता है – kaun sa vaar kis bhagavaan ka hota hai सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है। दैवीय शक्तियों को विधाता ने मनुष्य की अलग-अलग इच्छाओं को पूरा करने का काम सौंपा है। हर दिन का अपना खास महत्व होता है लेकिन कुछ दिनों में विशेष देवी-देवताओं का पूजन करने से सांसारिक कामनाओं की पूर्ति होती है। सप्ताह के सात दिन भी सात देवों को समर्पित हैं। रविवार को सूर्य, सोमवार को चंद्र, मंगलवार को मंगल, बुधवार को बुध, गुरुवार को बृहस्पति, शुक्रवार को शुक्र और शनिवार को शनि का पूजन करना अच्छा रहता है। किस देवता की पूजा से क्या लाभ मिलता है – kis devata kee pooja se kya laabh milata hai ज्योतिष के अनुसार सूर्य अच्छा स्वास्थ्य देता है। चंद्र धन-संपत्ति देता है। मंगल यानि मंगलवार व्याधियों यानी रोगों का रोक-थाम करता है। बुध आपको शक्ति एवं स्वास्थ्य बल देता है। बृहस्पति आपकी उम्र बढ़ाता है। शुक्र भौतिक सुख प्रदान करता है। शनिवार को शनि की पूजा करते है तो मृत्यु का भय दूर होता है। सोमवार को ऐसे करें चंद्रमा की पूजा – somavaar ko aise karen chandr kee pooja शिवजी ने चंद्र को अपने मस्तष्क पर धारण किया है। इसी वजह से इस दिन शिवजी की पूजा करनी चाहिए इससे चंद्र भी परशान होता है और हर सोमवार शिवलिंग की पूजा करें और जल चढ़ाए। मंगलवार को कैसे कर सकते हैं मंगल की पूजा – mangalavaar ko kaise kar sakate hain mangal kee pooja मंगल के लिए मंगलवार को शिवलिंग पर लाल मसूर चढ़ाएं। मंगल की पूजा शिवलिंग रूप में ही होती है। मंगलवार को शिवलिंग पर लाल गुलाब चढ़ाएं। बुधवार को बुध की पूजा करें – budhavaar ko budh kee pooja karen बुध ग्रह के लिए हर बुधवार हरी मूंग का दान करें। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाएं। गुरुवार को बृहस्पति की पूजा – guruvaar ko brhaspati kee pooja देवगुरु बृहस्पति की पूजा भी शिवलिंग रूप में ही की जाती है। इसीलिए हर गुरुवार शिवलिंग पर चने की दाल और बेसन के लड्डू चढ़ाएं। शुक्रवार को करें शुक्र की पूजा – shukravaar ko karen shukr kee pooja शुक्र ग्रह के लिए हर शुक्रवार शिवलिंग पर जल चढ़ाएं साथही  बिल्व पत्र चढ़ाएं। शनिवार को शनि की पूजा – shanivaar ko shani kee pooja हर शनिवार ग्रहों के देवता शनि की पूजा करें। शनि को तेल चढ़ाएं और हनुमान चालीसा का पाठ करें। मान्यता है कि हनुमानजी की पूजा से भी शनिदेव परशान होते हैं। कौन सा दिन किस भगवान का है? – kaun sa din kis bhagavaan ka hai 1 हफ्ते में 7 दिन होते है सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार आइये जानते है किस दिन कौन से भगवान की पूजा करे – सोमवार – Somvar सोमवार का दिन साक्षात् जगत पिता भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भगवान शिवजी की पूजा की जाती है। भगवान शिव को देवों के देव महादेव भी कहा जता है। इस दिन शिव जी की  पूजा करने से भगवान शिव अपने भक्त से प्रसन्न हो जाते हैं। उनकी पूजा करने से समाज में मान-सम्मान भी बढ़ता है। ज्योतिषियों के अनुसार, जो लोग भगवान शिवजी का व्रत राहकते उन पर शिवजी की कृपा हमेशा बनी रहती है। मंगलवार – Mangalvar मगंलवार का दिन मंगल ग्रह का दिन होता है। इस दिन हनुमान जी की पूजा की जाती है। इस दिन हनुमान जी की पूजा से भक्त के पिछले जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही जिन लोगों की कुंडली में मंगल ग्रह कमजोर होता है उन्हें मंगलवार के दिन हनुमान जी की पूजा करने की सलाह दी जाती है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने और चालीसा पढ़ने से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है। बुधवार – Budhvar बुधवार का दिन श्री गणेश जी का होता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन कोई भी काम करना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होता है उन्हें बुधवार के दिन गणेश भगवान की पूजा करने की सलाह दी जाती है। गुरुवार – Guruvar गुरुवार का दिन भगवान विष्णु का दिन होता है। इस दिन केले के पेड़ की पूजा करने की सलाह दी जाती है। कहा जाता है कि केले के पेड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। ज्योतिषियों के अनुसार, अगर इस दिन घर की महिलाएं पूजा करती है तो घर में पैसे की कमी नहीं होती है। शुक्रवार – sukharvar शुक्रवार का दिन संतोषी मां का दिन होता है। इस दिन मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की की जाती है। ज्योतिषियों के अनुसार, इस दिन अगर घर की महिलाएं पूजा करती तो शुभ होता है और धन – दौलत  से भर जाता है। इसके साथ ही शुक्र ग्रह को भी भौतिक सुखों का कारक भी माना जाता है। शनिवार – shanivar शुक्रवार का दिन शनिदेव का दिन होता है। इस दिन शनि देव की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस दिन पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। जिन लोगों की कुंडली में शनि दोष चल रहा होता है उन लोगों को इस दिन मंदिर में जाकर पूजा करने की सलाह दी जाती है। सके साथ ही इस दिन पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना और शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। रविवार – ravivar रविवार का दिन सूर्य देवता का दिन माना जाता है। इस दिन सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। रविवार को व्रत रखने से व्यक्ति का तेज बढ़ता है। इसके साथ ही जिन लोगों की कुंडली में सूर्य कमजोर उन्हें इस दिन लाल वस्त्र पहनने की सलाह दी जाती है। रविवार को भगवान सूर्य का व्रत रखना भी शुभ माना जाता है। कलयुग में कौन से भगवान की पूजा करनी चाहिए – kalayug mein kaun se bhagavaan kee pooja karanee chaahie कलयुग में किस भगवान की पूजा करने से शीघ्र फल की प्राप्ति हो सकती है अथवा कलयुग में कौन से भगवान की पूजा करनी चाहिए यह जानना बहुत ही जरूरी है। वैसे तो कलयुग में बहुत सारे भगवान ऐसे

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भगवान को क्यों चढ़ाया जाता है नारियल – Bhagwan ko kyun chadhate hain nariyal in Hindi

भगवान को नारियल क्यों चढ़ाया जाता है – Nariyal kyon chadhaya jata hai नारियल को संस्कृत में ‘श्रीफल’ कहा जाता है और श्री का अर्थ लक्ष्मी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मी के बिना कोई भी शुभ काम पूर्ण नहीं होता है। इसीलिए शुभ कार्यों में नारियल का इस्तेमाल अवश्य होता है। नारियल के पेड़ को संस्कृत में ‘कल्पवृक्ष’ भी कहा जाता है। ‘कल्पवृक्ष’ सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करता है। पूजा के बाद नारियल को फोड़ा जाता है और प्रसाद के रूप में सब में वितरित किया जाता है।सनातन धर्म में पूजा के दौरान तमाम चीजें भगवान को अर्पित की जाती हैं। उसमें नारियल का अपना अलग महत्व है. कई अनुष्ठानों में तो नारियल के बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है. मान्यता है नारियल का भोग भगवान ग्रहण करते हैं और प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं. इसके अलावा कोई नया या शुभ काम करने के दौरान भी नारियल फोड़ने का चलन है. लेकिन आखिर धार्मिक कार्यों के दौरान नारियल इतना अहम् क्यों माना जाता है। मान्यता है नारियल का भोग भगवान ग्रहण करते हैं और प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं. इसके अलावा कोई नया या शुभ काम करने के दौरान भी नारियल फोड़ने का चलन है। नारियल का फल चढ़़ाने के पीछे कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि विष्णु भगवान पृथ्वी पर अवतरित होते समय मां लक्ष्मी के साथ नारियल का वृक्ष और कामधेनु दोनों को अपने साथ लाए थे, इसलिए ये भगवान को अति प्रिय है। इसके अलावा कुछ विद्वानों का मत है कि नारियल ही वो कल्पवृक्ष है जिसका जिक्र अक्सर शास्त्रों में मिलता है. कल्पवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है. इसलिए इस वृक्ष का फल भगवान को अति प्रिय होता है. कुछ लोग नारियल पर बनी तीन आखों को शिव जी के तीन नेत्र मानते हैं. कुल मिलाकर नारियल का संबन्ध देवताओं से जोड़कर देखा जाता है, इसलिए इसे पवित्र माना जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है। नारियल क्यों फोड़ा जाता है – Nariyal kyu foda jata hai इसलिए नारियल फोड़कर किया जाता है शुभ काम हिंदू धर्म में कई तरह की परंपराएं पौराणिक काल से चली आ रही हैं. इन्हीं में से एक परंपरा नरबलि की भी है. माना जाता है कि पुराने समय में साधक अपनी साधना पूरी करने के लिए और अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए नर बलि देते थे. बाद में इस प्रथा को बंद कर दिया गया और नर की जगह नारियल की बलि दी जाने लगी क्योंकि नारियल को नर का प्रतीक माना जाता है. इसके ऊपर के बुच को बाल इसके सख्त हिस्से को खोपड़ी और पानी को रक्त की संज्ञा दी जाती है। नारियल एक सख्त सतह और फिर एक नर्म सतह होता है और फिर इसके अंदर पानी होता है जो बहुत पवित्र माना जाता है। इस पानी में किसी भी तरह की कोई मिलावट नहीं होती है। नारियल भगवान गणेश का पसंदीदा फल है। इसलिए नया घर या नई गाड़ी लेने पर फोड़ा जाता है। इसका पवित्र पानी जब चारों तरफ फैलता है तो नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं। मानव के रूप में विश्वामित्र ने तैयार किया था नारियल ये भी मान्यता है कि नारियल को मानव के रूप में विश्वामित्र ने तैयार किया था. एक बार वे इन्द्र से रुष्ट हो गए और दूसरे स्वर्ग लोक का निर्माण करने लगे. उसके बाद उनका मन बदला और वो दूसरी सृष्टि का ही निर्माण करने लगे. तब उन्होंने मानव के रूप में नारियल का निर्माण किया. इसीलिए नारियल के खोल पर बाहर दो आंखें और एक मुख की रचना होती है। महिलाएं क्यों नहीं तोड़ती नारियल – Ladkiya nariyal kyu nahi todte  नारियल फोड़ना बलि का प्रतीक माना जाता है, और परंपरागत रूप से नारियल को नई सृष्टि के युगो का बीज माना गया है। नारियल को बीज का स्वरूप माना गया है और इसे प्रजनन से जोड़कर देखा जाता है। महिलाओं को ही ईश्वर ने संतान को जन्म देने की शक्ति प्रदान की है इसलिए स्त्री को उत्पत्ति की कारक माना गया है, यही कारण है कि महिलाओं के लिए नारियल फोड़ना वर्जित कर्म माना गया है। दरअसल ऐसा माना जाता है कि नारियल एक फल नहीं है बल्कि बीज है। बीज से ही किसी बच्चे का जन्म होता है। महिलाएं भी शिशु को जन्म देती हैं, ऐसे में वो बीज को नुकसान कैसे पहुंचा सकती हैं इसलिए उन्हें नारियल फोड़ने से रोका जाता है। मान्यता ये भी है कि नारियल भगवान विष्णु की ओर से भेजा गया पृथ्वी पर पहला फल है और इस फल पर सिवाय लक्ष्मी जी को छोड़कर और किसी की हक नहीं इसलिए पराई स्त्रियों को नारियल फोड़ने से रोका जाता है। नारियल के वृक्ष को कल्पवृक्ष कहते है, नारियल में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही देवताओं का वास माना गया है। ये भी एक कारण है महिलाओं को नारियल के दूर रखने का। कलश पर क्यों रखा जाता है नारियल – Kalasg par kyu rakhte hain nariyal आम तौर पर देखा जाता है कि कलश स्थापना के दौरान कलश के उपर नारियल रखा जाता है। दरअसल, कलश के ऊपर धरे नारियल को भगवान गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। कलश में सभी तीर्थों को आमंत्रित किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है और भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं। कलश पर नारियल रखने का सही तरीका – Kalash par nariyal kaise rakhe in Hindi कलश के ऊपर नारियल रखने का उद्देश्य ये होता है कि कलश में स्थित देवता और तीर्थ मंगलकारी हों। साथ ही देवी लक्ष्मी की कृपा से उन्नति बनी रहे। लेकिन कलश स्थापन का उद्देश्य तभी सफल होता है जब कलश पर रखा हुआ नारियल का मुख पूजन करने वाले जातक की ओर हो। नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है। ऐसे में नारियल रखते समय ध्यान दें कि उसका मुख जातक की तरफ रहे। कलश पर इस तरह नारियल रखना होता है हानिकारक “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय, ऊर्धवस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय, तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीलेलंष्।” इस श्लोक में

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बुरी नज़र से बचने के उपाय – Evil Eye Protection In Hindi

ईविल ऑय क्या है – What is Evil Eye in Hindi ईविल ऑय बुरी नज़र से बचने में मदद करता है पर आज कल लोग इसे ज्वेलरी के रूप में भी पहनना पसंद कर रहे हैं। आइए जानते हैं की आप बुरी नजर से बचने के लिए किन-किन चीजों को धारण कर सकते हैं – नेकपीस (गले का हार) – Evil eye necklace meaning  आजकल मार्केट में Evil Eye डिजाइन के छोटे-छोटे पेंडेंट मिलते हैं। यह देखने में बेहद खूबसूरत लगते हैं। आप इसे डेली यूज में आसानी से पहन सकती हैं। ईयररिंग्स (कान के बुंदे) – Evil eye earrings in Hindi आजकल इस तरह के लॉन्ग ईयररिंग्स काफी पसंद किए जा रहे हैं, जो देखने में बेहद अच्छे लगते हैं। वैसे तो इस तरह के स्टेटमेंट ईयररिंग्स आपको मार्केट में भी मिल जांगे लेकिन अगर आप चाहें तो इसे ऑनलाइन भी खरीद सकती हैं। ब्रेसलेट (हाथ का कडा) – Evil eye bracelet आजकल तो एक बेहद लाइट व पतला ब्रेसलेट हाथों की शोभा बढ़ाता है। इस तरह के ब्रेसलेट केजुअल से लेकर ऑफिस तक आसानी से पहने जा सकते हैं। अगर आप ब्रेसलेट में कुछ डिफरेंट पहनना चाहती हैं तो Evil Eye ब्रेसलेट का चयन कर सकती हैं। एंक्लेट (पायल) – Evil eye anklet in Hindi  सुनने में आपको शायद अजीब लगे लेकिन Evil Eye डिजाइन को अब पायल में भी इस्तेमाल किया जा रहा है और यह पायल देखने में इतनी अच्छी लगती है कि कहीं उसे ही किसी की नजर न लग जाए। अगर आपको मार्केट में Evil Eye डिजाइन की पायल नहीं मिलती हैं तो आप अमेजन से इसे आसानी से खरीद सकती हैं। बुरी नज़र क्या होती है – Buri nazar kya hoti hai  नजर दोष के कारण मनुष्य को जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हर क्षेत्र में निराशा हासिल होने लगती है। सिर में हमेशा दर्द बना रहता है और घबराहट होती रहती है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि पर बुरी नज़र के कारण व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है। यदि किसी घर को नजर लग जाए तो उस घर में सदैव कलह होता रहता है जिससे अशांति का माहौल बना रहता है। घर-परिवार का कोई न कोई सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित रहने लगता है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है और खर्च जरूरत से ज्यादा बढ़ जाते हैं। यदि काम-धंधे में नजर लग जाए तो व्यापार ठप हो जाता है। यदि किसी शिशु को नजर लग जाए तो वह बीमार पड़ जाता है और बिना बात के बार-बार रोने लगता है। इन लक्षणों से पता चलता है कि आपको बुरी नजर लगी है या नहीं – Buri nazar ke lakshan in hindi हमारे आस-पास सकारात्मक और नकारात्मक दो तरह की ऊर्जा होती हैं। ये ऊर्जा हमारे व्यवहार, सोच और क्रियाओं से आती हैं। ऐसी मान्यता है कि नजर लगने से स्वास्थ्य बिगड़ने के साथ हमारी प्रगति भी रूक जाती है। ऐसा कहा जाता है कि नजर दोष के कारण मनुष्य को जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हर क्षेत्र में निराशा हासिल होने लगती है। सिर में हमेशा दर्द बना रहता है और घबराहट होती रहती है। यदि किसी घर को नजर लग जाए तो उस घर में सदैव कलह होता रहता है जिससे अशांति का माहौल बना रहता है। घर-परिवार का कोई न कोई सदस्य किसी न किसी रोग से पीड़ित रहने लगता है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है और खर्च जरूरत से ज्यादा बढ़ जाते हैं। यदि काम-धंधे में नजर लग जाए तो व्यापार ठप हो जाता है। बुरी नज़र लग जाए तो क्या करे? – Buri nazar se bachne ke upay hindi आइए आज हम उन अचूक उपायों के बारे में जानते हैं जो बड़े से बड़े नजर दोष को चुटकियों में दूर कर देता है। नजर दोष से बचने के लिए जब कभी भी अपनी या फिर किसे अपने प्रिय की तारीफ करें तो लकड़ी को छूकर ही कुछ बोलें. पश्चिम में लोग अक्सर नजर दोष से बचने के लिए यही उपाय करते हैं। जब आपको लगे कि किसी व्यक्ति विशेष की नजर लगी है तो आप उससे अपने बच्चे के सिर पर हाथ फिरवा कर भी नजर उतार सकते हैं। यदि आपको लगता है कि आपके घर के सामंजस्य या फिर कहें घर को ही किसी की नजर लग गई है तो घर में सुंदरकांड का पाठ करें और प्रतिदिन धूप-दिया जलाएं. इस उपाय को करने से घर के भीतर सकारात्मक उर्जा उत्पन्न होती है और बुरी बलाएं दूर होती हैं। यदि आपको लगता है कि आपके बच्चे को नजर लग गई है और वह लगातार रोए जा रहा है या फिर चिड़चिड़ा हो गया है तो आप एक तांबे के लोटे में पानी और ताजे फूल लेकर के बच्चे के सिर पर से 11 बार उतारें। इसके बाद उस पानी को किसी पेड़ के नीचे या फिर गमले में डाल दें. इस उपाय को करते ही नजर दोष दूर हो जाएगा। यदि किसी बच्चे को नजर लग जाए तो पारंपरिक उपाय के तौर पर उसे नमक, राई के दाने, पीली सरसों, मिर्च, पुरानी झाडू का एक टुकड़ा लेकर नजर लगे व्यक्ति पर से आठ बार उतार कर आग में जला दें। यदि जलाने पर मिर्च की धांस नहीं आती है तो समझ लीजिए कि उसकी नजर उतर गई। बुरी नजर से बचना के लिए कोनसा रत्न पहनने? – Buri nazar se bachne ke liye kya pahne जिस व्यक्ति पर काला जादू/टोना टोटका और बुरी नज़र का प्रभाव हो उसे सुलेमानी हकीक धारण कारन चाहिए। सुलेमानी हकीक धारण करने के लाभ हर तरह के काला जादू और बुरी नजर के प्रभाव से बचाता है और अगर किसी को ऐसा लगता हो कि उस पर किसी की बुरी नजर है तो ऐसी अवस्था में उसे हकीक तुरंत धारण कर लेना चाहिए। नौकरी या व्यवसाय में अगर परेशानी आ रही हो तो भी इस रत्न को धारण करना बहुत लाभदायक रहता है। इसे किसी भी आयु का व्यक्ति किसी भी दिन पहन सकता है। यह बुरी नजर की बाधा दूर करके सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करता है। सुलेमानी पत्थर को चांदी के लॉकेट में धारण करके नीले धागे में बांधकर

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मोती रत्न कौन पहन सकता है?

मोती रत्न कौन पहन सकता है? मेष राशि मेष राशि वाले लोगो की जन्मपत्रिका में चन्द्रमा चौथे घर का स्वामी होता है। ये स्थान शुभ है , इसका संबंध माता, भूमि, भवन, वाहन और सुख से होता है। मेष राशि वालों को मोती रत्न धारण करना चाहिए। मोती धारण करने से आपको इन विषयों के शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। वैसे भी पाराशरी के अनुसार चौथे घर का चन्द्रमा विशेष मधुर संबंध रखता है क्योंकि ये भाव माता का है। वृष राशि इस लग्न वालों के लिये चन्द्रमा तीसरे भाव का स्वामी होता है, जो कि अकारक है। अगर जन्मपत्रिका में चन्द्रमा लग्न में न बैठा हो तो वृष राशि वालों को मोती नहीं धारण करना चाहिए। मोती पहनने से भाई-बहनों से संबंध खराब हो जायेंगे और कुछ अपयश भी हो सकता है। सबसे अच्छा मोती कौन सा होता है? सबसे अच्छा मोती ऑस्ट्रेलिया मोती होता है। या आदिक चमकदार और सफ़ेद होता है , और इसका आकर गोल हो तो अति उत्तम होता है। अगर गोल मोती नहीं मिले तो लम्बा मोती धारण किया जा सकता है। मोती रत्न पहनने से क्या लाभ होता है? मोती धारण करने के लाभ मोती रत्न धारण करने से लोगो पर माता लक्ष्मी की कृपा रहती है। इससे लोगो की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। जो लोग आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हैं उनके लिए सफेद मोती पहनना बहुत शुभ होता है। जिन लोगों को गुस्सा ज्यादा आता है उनके लिए भी मोती पहनना बहुत शुभ माना जाता है। मोती कब और कैसे धारण करें?/सच्चे मोती की अंगूठी कैसे धारण करे? मोती को चांदी की अंगूठी में सबसे छोटी अंगुली में शुक्ल पक्ष के सोमवार की रात को धारण करते हैं। कुछ लोग इसे पूर्णिमा को भी धारण करने की सलाह देते हैं। इसे गंगाजल से धोकर, शिवजी के सामने कुछ समय अर्पित करने के बाद ही धारण करें। मोती स्टोन कितने दिन में असर दिखाना शुरू करता है? मोती रत्न काफी जल्दी असर दिखता है। मोती रत्न धारण करने बाद आपको 3 दिनों में असर दिखना शूरू हो जाता है अगर आप ओरिजिनल और अछि क्वालिटी का धारण करते है। असली मोती की कीमत क्या है? असली मोती आपको 500 से 2500 रूपये तक मिल जाएगा। आदिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करे – https://jeewanmantra.com/shop/astro-mantra/ratna/moti-ratan/?cgkit_search_word=%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%80 असली मोती की पहचान कैसे की जाती है? असली मोती छूने में ठंडे होते हैं, लेकिन वे जल्द ही गर्म हो जाते हैं। यह केवल कुछ सेकंड के समय में होता है। दूसरी ओर, मशीन से बने मोती कमरे के तापमान के बराबर होता है और जब आप उन्हें अपने हाथों में रखते हैं तो आपको तापमान में अंतर महसूस नहीं होता है। इस में एक समस्या है क्योंकि कांच के मोतियों का उपयोग करके बनाए गए नकली मोती भी छूने में ठंडे हो सकते हैं। हालांकि, असली मोती का तापमान गर्म होने में अधिक समय लगता है। इस प्रकार से आप असली मोती की पहचान कर सकते है। मोती कहाँ पाया जाता है? आस्ट्रेलिया के समुद्री से प्राप्त होने वाला  मोती भी सफेद तथा गोल आकर का होता है। कैलिफोर्निया क्षेत्रों तथा लाल सागर में भी मोती प्राप्त होते हैं।  मोती रत्न कितने रत्ती का पहनना चाहिए? मोती आपको कितने रत्ती का पहनना चाहिए कम से कम आपको 5.25 रत्ती का पहनना चाहिए। आपको जल्दी और अच्छे प्रभाव के लिए अपने वजन के अनुसार रत्न धारण करने चाहिए जिसे आपका वजन 50 से 60 के बीच है तो आपको 5.25 रत्ती का पहनना चाहिए अगर 60 से 70 के बीच है तो 6.25 रत्ती का पहनना चाहिए इस प्रकार आपको सभी रत्न धारण करने चाहिए।

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नीलम रत्न धारण करने से क्या लाभ होता है?

नीलम रत्न धारण करने से क्या लाभ होता है? नीलम रत्न धारण करने से आपको स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और रोगों से छुटकारा मिलता है , साथ ही नौकरी और व्यापार में तरक्की होती है और धन लाभ होने लगता है। रत्न शास्त्र के अनुसार माना जाता है कि यदि नीलम रत्न किसी व्यक्ति को सूट हो जाए तो शुभ एवं लाभकारी फल देता है। नीलम रत्न कितने दिनों में असर करना शुरू करता है? नीलम का असर बहुत ही तेजी से होता है। यह लगभग 24 घंटे में ही असर दिखाना शुरू कर देता है। नीलम इन्हीं शक्तियों का कारण ज्योतिष सलाह देते है की नीलम रत्न धारण करने से पहले इसकी जांच जरूर करे , यह आपके लिए लाभदायक है या नहीं। इसके लिए नीलम रत्न को रात के समय तकिये के नीचे रखें यदि सोते समय बुरे सपने नहीं आए , स्वास्थ्य सामान्य रहे और चेहरे में कोई बदलाव नहीं हो तब नीलम को पंचधातु , लोहा अथवा सोने की अंगूठी में धारण करे। अगर इनमें से कोई भी परेशानी आती है तब नीलम पहनने की भूल नहीं करनी चाहिए। नीलम रत्न को कौन सी उंगली में पहनना चाहिए? नीलम रत्न दाएं ( सीदे ) हाथ की मध्यमा उंगली यानी मिडिल फिंगरन में धारण करना चाहिए , क्योंकि ज्योतिष के अनुसार मध्यमा उंगली शनि की होती है। किसी ब्राह्मण से शनि मंत्रों के साथ नीलम को अभिमंत्रित करवा ही धारण करे।  नीलम कम से कम कितने रत्ती का पहनना चाहिए? नीलम रत्न कम से कम 5.25 रत्ती का पहनना चाहिए और सभी रत्न अपने वजन के हिसाब से पहनने चाहिए जिसे आपका वजन 50 से 60 के बीच है तो आपको 5.25 रत्ती का पहनना चाहिए यदि आपका वजन इससे कम है तो जब भी आपको 5.25 रत्ती का ही पहनना चाहिए  या 60 से 70 के बीच है तो 6.25 रत्ती , 70 से 80 के बीच तो 7.25 इस प्रकार से आपको रत्न धारण करने चाहिए जिसे आपको ज्यादा लाभ मिले। नीलम रत्न कब और कैसे पहने? नीलम रत्न शनिवार के दिन धारण करे , नीलम धारण करने के बाद दान जरूर करे। साथ ही शनिवार के दिन शराब एवं मासाहारी भोजन बिल्कुन न करें। ऐसा माना जाता है की मेष, वृष, तुला एवं वृश्चिक राशि के लोगों के लिए नीलम रत्न धारण करना लाभदायक  एवं शुभ रहता है। नीलम के उपरत्न क्या है? नीलम का उपरत्न नीली, कटैला,  फ़िरोज़ा ,जमुनिया और लाजवर्त है। नीलम रत्न की पहचान कैसे करें? असली नीलम चिकना, चमकदार, साफ और मोर के पंख के समान सोभा वाला होता है। नीलम को आप कांच के गिलास में डाल देंगे तो आपको अगर नीली किरणें दिखाई देने लगती है तो नीलम असली है नहीं तो वो असली नीलम नहीं है। असली नीलम का रेट क्या है? इसकी कीमत 1,000 रु कैरेट से लेकर 100,000 रु कैरेट तक के हो सकती है। अगर आपको अच्छा और जल्दी प्रभाव चाहिए तो उसकी कीमत  5,100.00  से  14,700.00 तक होती है। आदिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करे –https://jeewanmantra.com/shop/astro-mantra/ratna/sri-lanka-blue-sapphire-stone/?cgkit_search_word=sri%20lanka%20neelam नीलम की अंगूठी पहनने से क्या होता है? BHAI YE OR PHLA POINT SAME HA नीलम कौन धारण कर सकता है?/नीलम रत्न कौन सी राशि वालों को पहनना चाहिए? आये जानते किन – किन राशि वालो को नीलम रत्न धारण करना चाहिए और किनको नहीं। मेष राशि – मेष रा‍शि के लोगो को नीलम रत्‍न बिलकुल धारण नहीं करना चाहिए। मेष राशि का स्‍वामी ग्रह मंगल है और नीलम शनि का रत्‍न है। इन दोनों ग्रहों के आपसी संबंध अच्‍छे नहीं हैं। इसलिए मेष राशि के लोगो को नीलम रत्‍न धारण करना उन्‍हें मुश्किल में डाल  सकता है। वृषभ राशि – वृषभ राशि के लोग नीलम रत्न बिना किसी डर के धारण कर सकते हैं। वृषभ का स्‍वामी ग्रह शुक्र है और इसके शनि के साथ अच्‍छे संबंध हैं। वृषभ राशि के लोगो के जीवन में नीलम रत्‍न खुशियां, समृद्धि और अच्छा समय लाएगा। मिथुन राशि – बुध और शनि की आपस में नहीं बनती और इसलिए बुध की राशि मिथुन को नीलत रत्‍न धारण करने से फायदे की जगह नुकसान हो सकता है। तो ज्योतिष दुवारा सहला लेकर ही धारण करे। कर्क राशि – चंद्रमा और शनि के बीच में हमेशा लड़ाई ही रहती है इसलिए इस राशि के लोगो को नीलम रत्‍न बिलकुल भी धारण नहीं करना चाहिए। सिंह  राशि – सिंह राशि का स्‍वामी ग्रह सूर्य है। शनि और सूर्य के बुरे संबंध होने के कारण नीलम रत्‍न सिंह राशि के लोगो के लिए अच्‍छा नहीं रहता है। ये रत्‍न आपके जीवन में मुस्किले खड़ी कर सकता है तो सिंह राशि वाले नीलम रत्न धारण ना करे। कन्‍या राशि – कन्‍या राशि के लोगों को नीलम रत्‍न धारण करने से न तो ज्‍यादा फायदा होगा और न ही ज्‍यादा नुकसान। आप चाहें तो ये रत्‍न धारण कर सकते हैं। एक बार ज्योतिष से सहला करके धारण करे। तुला राशि – शुक्र और शनि के बीच में शुभ संबंध होने के कारण इस राशि के लोग नीलम रत्‍न धारण कर सकते हैं। ज्‍यादा लाभ के लिए आप नीलम रत्‍न को डायमंड या पन्‍ना के साथ भी धारण कर सकते हैं। वृश्चिक राशि – वृश्चिक राशि का स्‍वामी ग्रह शनि ही है लेकिन आप नीलम रत्‍न तभी धारण करें जब आपकी कुंडली  में शनि पांचवें, नौंवें और दसवें भाव  में बैठा हो। तब ही नीलम रत्न धारण करे। धनु  राशि – धनु राशि गुरु की राशि है धनु एवं गुरु और शनि के बीच में शत्रुता का संबंध है। धनु राशि के लोगो को नीलम रत्‍न धारण नहीं करना चाहिए। मकर राशि – मकर राशि के लोगो के लिए नीलम रत्‍न जितना शुभ और कोई रत्‍न नहीं हो सकता है। मकर राशि का स्‍वामी शनि है एवं इस राशि के लोग बिना किसी डर के नीलम रत्‍न धारण कर सकते हैं और इससे उन्हें आदिक लाभ मिलेगा। कुंभ राशि – कुंभ राशि का स्‍वामी शनि है एवं नीलम रत्‍न कुंभ रा‍शि के लोगो के जीवन में अच्छा समय , धन प्राप्ति , शुक – शांति और खुशिया लेकर आता है। मीन राशि – मीन गुरु की राशि है मीन एवं गुरु और शनि के बीच में शत्रुता

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पुखराज कौन-कौन पहन सकता है

कई लोगों की राशि में बृहस्पति ग्रह का प्रभाव होता है। जो की आपके जीवन में मुश्किलें ला सकती है , पर सही जानकारी के साथ इसका उपाय किया जा सकता है। जानिए पुखराज रत्न किन किन राशियों को लाभ पहुंचाता है और इसे कैसे धारण करना चाहिए। ज्योतिष में नव ग्रहों के बारे में बताया गया है। इन सभी ग्रह का अपना – अपना , अलग – अलग प्रभाव होता है और ये ग्रह अलग – अलग फल प्रदान करते है।  जब ये ग्रह अपना स्थान बदलते हैं , इसके कारण लोगो के जीवन पर प्रभाव पड़ता है। सभी ग्रह का लिया रत्न बताया गया है , यदि आप राशि और ग्रह के अनुसार रत्न धारण करते है तो आपको आदिक लाभ मिलता है उनके दुयारा होने के कारण समस्याओं को दूर किया जा सकता है। माना जाता है कि रत्न धारण करने से आपके जीवन में शुक – शांति और सफलता का मार्ग भी प्राप्त होता है। इन्हीं रत्नों में से एक बताया गया है पुखराज रत्न। पीले रंग का ये चमकीला रत्न बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व होता है। जिन लोगो की कुंडली में बृहस्पति हो उनके लिया पुखराज रत्न बहुत लाभदायक माना गया है। यदि किसी की कुंडली में बृहस्पति शुभ करिये प्रदान नहीं कर कर रहा है , उन्हें भी पुखराज धारण करना चाहिए। इसे धारण करने से विवाह की रुकावट दूर होती हैं साथ ही मान-सम्मान और धन-संपत्ति में ओर बढ़ोतरी होती है। रत्न बहुत ही प्रभावशाली होते है , इसलिए इन्हें धारण करने से पहले आपको सही जानकारी होना बहुत ही महत्वपूर्ण है , तो चलिए जानते हैं पुखराज पहनने के फायदे और इसे कैसे धारण करना चाहिए। पुखराज कौन कौन पहन सकता है? पुखराज हमेशा जब धारण करे जब कुंडली में बृहस्पति ग्रह की स्थिति हो। इस ररषि वालो को पुखराज धारण नहीं करना चाहिए कन्या, तुला, मकर, कुंभ , वृषभ, मिथुन इन्हे पुखराज रत्न धारण नहीं करना चाहिए ज्योतिषियों के अनुसार पुखराज उन्हें धारण करने चाहिए जिनके विवाह में देरी हो रही होती है। पुखराज कौन सी राशि के लोग पहन सकते हैं? मेष राशि मेष राशि का स्वामी मंगल ग्रह है और मंगल और गुरु के बीच अच्छे  संबंध हैं। गुरु का मेष राशि वालो के नौवें और बारहवें भाव पर भी प्रभाव पड़ता है मेष राशि के लोह पुखराज पहन सकते है और मेष राशि वालो को पुखराज पहने से धन की प्राप्ति और अच्छा भाग्य प्राप्त होता है। वृष राशि वृष राशि का स्वामी ग्रह शुक्र है इस ग्रह के गुरु के साथ कम संबंध होता है। गुरु, वृष राशि के आठवें और ग्यारहवें भाव का भी स्वामी है। वृषभ राशि के दूसरे, चौथे, पांचवे, नौवे, दसवें और ग्यारहवें भाव में गुरु हो तो ये लोग पुखराज पहन सकते है , लेकिन अच्छे से जांच परख करके ही पहने। मिथुन राशि मिथुन राशि का स्वामी बुध है। गुरु और बुध के बीच ना ही बहुत अच्छे संबंध है ना ही बहुत बुरे। गुरु जब दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें और आठवें भाव में हो तो लोगो को पुखराज रत्नर जरूर धारण करना चाहिए। गुरु मिथुन राशि के सातवें और दसवें भाव का स्वामी है। इस राशि के लोग पुखराज पहने से विवाह में देरी जिसे समस्या में मदद करता है और उपयुक्त साथी ढूंढने में मदद करता है। कर्क राशि कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा है और चंद्रमा का गुरु के साथ शांत और प्रेम का संबंध है। गुरु के छठे और नौवे भाव में होने पर कर्क राशि वाले लोगो को पुखराज रत्न पहने से पेट, ह्र्दय और सुहस्त बंधित रोगों में फायदा करता है। सिंह राशि सिंह राशि का स्वामी सूर्य है सूर्य और गुरु में सकारात्मक संबंध होता है। गुरु के पांचवे और आठवें भाव का स्वामी होता है तो सिंह राशि वाले लोगो को पुखराज पहनना चाहिए। इससे शिक्षा में सफलता प्राप्त होती है और सूर्य के माणिक के साथ पुखराज पहनने से भी लाभ होता है। तुला राशि तुला राशि के तीसरे और छठे भाव का स्वामी गुरु है और तुला राशि का स्वामी शुक्र है। गुरु और शुक्र का मेल नहीं होता जिसके कारण तुला राशि के लोगों को पुखराज रत्न जरा भी फायदा नहीं पहुंचाता है। पुखराज पहनने से आपको पेट से संबंधित परेशानी हो सकती है। वृश्चिक राशि वृश्चिक राशि का स्वामी ग्रह मंगल है। गुरु और मंगल दोनों मित्र है। वृश्चिक राशि के लोग लाल मूंगा के साथ पुखराज रत्न धारण करना चाहिए। इसके अलावा वृश्चिक राशि वालों के लिये गुरु रत्न पंचम भाव में शुभ फल प्रदान करेगा। ये विषय हैं – विद्या, संतान, विवेक, रोमांस, डिसीजन मेकिंग की एबिलिटी आदि।वृश्चिक राशि वालों को गुरु यंत्र के साथ ही पुखराज पहनना चहिये वरना नहीं पहनना चहिये धनु राशि  धनु राशि वालों के लिये गुरु प्रथम और चौथे भाव का स्वामी होता है। ये स्थान काफी शुभ है। धनु राशि वाले लोगो को पुखराज अवश्य पहनना चाहिए। इससे आपका शरीर, आपका स्वास्थ्य अच्छा तो रहगा ही साथ ही आपकी माता का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा। मकर राशि मकर राशि वालों का गुरु तृतीयेश यानि अकारक होता है और द्वादशेश यानि व्यय मान का स्वामी होने के कारण मकर राशि के लोगों को पुखराज रत्नि नहीं पहनना चाहिए। ये रत्नक आपको फायदे की जगह नुकसान दे सकता है। कुंभ राशि कुंभ राशि का स्वामी शनि ग्रह है। कुंभ राशि के गुरु का मेल नहीं होता है इस कारण कुंभ राशि के लोगों को भी पुखराज रत्न  नहीं पहनना चाहिए। मीन राशि मीन राशि वालों गुरु आपके प्रथम और दसवें भाव का स्वामी है और गुरु अगर दसवें भाव में हो तो बहुत ही शुभ होता है और बेहद शुभ फल प्रदान करता है। मीन राशि के लोगों को पुखराज रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। इससे आपका माइंड एंड बॉडी कॉर्डिनेशन बेहतर हो जायेगा। साथ ही आपके दसवें भाव के विषयों यानि पिता और करियर में भी पुखराज आपको शुभ फल देगा पुखराज रत्न कितने दिन में असर दिखाता है? इसे सुनेंरोकें बृहस्पति के अच्छे प्रभावों को प्राप्त करने के लिए अछि क्वालिटी का सिलोनी ( श्री लंका ) पुखराज ही धारण करें , पुखराज धारण करने का 30 दिनों में प्रभाव देने लग

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